50 किलो सोना और Danveer Karna | दानवीर कर्ण की कहानी
दान…. दान करना बहुत ही पुण्य का काम माना जाता है। सनातन धर्म में सदियों से ही दान की परंपरा रही है। दान का महत्व इसलिए भी अधिक बढ़ जाता है, क्योंकि ऐसी मान्यता है कि, आपके द्वारा किए दान का लाभ केवल जीवन ही नहीं बल्कि मृत्यु के बाद भी मिलता है। क्योंकि मृत्यु के बाद जब आपके कर्मों को तोला जाता है तो यही पुण्य कर्म काम आते हैं। Danveer Karna
लेकिन एक ऐसा शख्स भी हैं जिसे इस ब्रह्मांड का सबसे बड़ा दानवीर कहा गया हैं, इससे बड़ा न तो कोई दानवीर था और नहीं आने समय मे कोई दानवीर होगा। और जिस दानवीर की हम बात कर रहे हैं उनका नाम हैं सूर्य पुत्र कर्ण।
आईए आज जानते हैं आखिर कर्ण (Danveer Karna) कौन से मंदिर मे 50 किलो सोना दान करते थे, लेकिन उससे पहले हम यह जानते हैं आखिर श्री कृष्ण जी ने क्यूँ कर्ण को महा कर्ण दानवीर कहलाए जाने का वरदान दिया।
जब महाभारत युद्ध के सातवे दिन, अर्जुन और कर्ण के बीच भिषंड युद्ध चल रहा था, और वह युद्ध रुक नहीं रहा था और कर्ण जब हार नहीं रहा था तो, ऐसे मे श्री कृष्ण सोच मे पड़ गए क्यूंकी अगर सूर्यास्त से पहले अगर कर्ण की मृत्यु नहीं हुई, तो पांडवों के लिए इस युद्ध को जीतना असंभव हो जाता ।
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इन्ही सब को सोचते हुए श्री कृष्ण ने एक रचना रची और रथ को युद्ध से बाहर ले जाने लगे। ऐसे मे अर्जुन ने सवाल किया की, “माधव आप रण भूमि छोड़ कर क्यूँ भाग रहे हैं।“ तब श्री कृष्ण अर्जुन को समझते हैं “पार्थ मेरा दूसरा नाम रणछोड़ भी हैं, और कभी कभी युद्ध जीतने से अगर युद्ध छोड़ कर जाना पड़े तो इसमे कोई बुराई नहीं हैं”
श्री कृष्ण को रण भूमि छोड़ता देख, कर्ण को बड़ा ही अचमबीत लगा और वह अर्जुन के रथ का पीछा करने लगा। कर्ण के लाख पुकारने से जब श्री कृष्ण न रुके तो कर्ण सामने से आकर उनका रास्ता रोक देता हैं। और फिर से दोनों के बीच युद्ध छिड़ जाता हैं, अर्जुन के तीर के हमले से, कर्ण का रथ थोड़ा पीछे की तरफ चला जाता है और पीछे की तरफ दलदल होने के कारण कर्ण के रथ का पहियाँ उस मे फस गया।
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कर्ण रथ का पहियाँ निकालने के लिए रथ से उतरा, ऐसे मे श्री कृष्ण ने कहा “पार्थ यह बिल्कुल सही वक्त हैं, कर्ण का वध कर दो” अर्जुन यह सुनने के बाद श्री कृष्ण से कहता हैं “ हे माधव मैं ऐसा नहीं कर सकता अभी तो कर्ण अपने रथ पर भी सवार नहीं हैं, यह मेरे धर्म के खिलाफ हैं” तब श्री कृष्ण अर्जुन को कर्ण की करी हुई अधर्म के सारी गलतियाँ याद दिलाते हैं।
ऐसे मे अर्जुन क्रोध मे आकर, कर्ण पर तीर चला देता हैं और वह तीर कर्ण के गले को चिर देता हैं। जिससे कर्ण वही गिर जाता हैं और अपनी मृत्यु के निकट पहुच जाता हैं।
ऐसे मे श्री कृष्ण कर्ण की परीक्षा लेने एक ब्राह्मण के रूप मे वहाँ पहुचते हैं, और कर्ण को देख कर कहते हैं “हे दानवीर मैंने आपके दान के बारे मे बहुत कुछ सुना हैं क्या आप मेरी सहायता करेंगे?” ऐसे मे कर्ण अपनी बची हुई साँसे गिनते हुए उस ब्राह्मण से कहता हैं “जी बिल्कुल कहिए मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूँ?”
श्री कृष्ण रूपी ब्राहमण, कर्ण से कहते हैं “हे दानवीर मेरी पुत्री का विवाह हैं, क्या आप मुझे कुछ सोना दान कर सकते हैं?” कर्ण, ब्राह्मण से कहते हैं “मेरे पास अभी इस वक्त सोने का सिर्फ दाँत ही हैं, क्या मैं आपको यह दान के रूप मे दे सकता हूँ?”
ब्राह्मण खुश होते हैं, और कहते हैं “आप मुझे यह दाँत दान के रूप मे दे सकते हो”वहाँ रखे पत्थर से कर्ण अपने दाँतो को तोड़ देता हैं और सोने के दाँत को दान केरूप मे देने लगते है। ऐसे मे दाँत पर मिट्टी लग जाने के कारण ब्राह्मण कहते हैं “दान तो पवित्र चीज का दिया जाता हैं और इस पर मिट्टी लगी हुई हैं, कृपया आप मुझे यह दाँत धो कर दे। ऐसे मे कर्ण ने पास मे पड़े तीर को उठाया और माँ गंगा का आवाहन करा और धरती मे दे मारा जिससे एक गंगा की धार निकलने लगी, और फिर उस गंगा की धार से कर्ण ने दाँत धोए और ब्राह्मण को दान दे दिया।
ब्राह्मण रूपी श्री कृष्ण, कर्ण की दानवीरता से प्रसन्न होकर श्री कृष्ण ने अपने सत-रूप मे दर्शन दिए, और कर्ण से कहा “मैं तुम्हारी दानवीरता से बहुत प्रसन्न हुआ, इस त्रिलोक मे तुम जैसा दानवीर कोई भी नहीं हैं, जब तक चाँद सूरज रहेंगे तब तक तुम इस त्रिलोक मे महा दानवीर कर्ण कहलाओगे; बताओ तुम्हें वरदान मे क्या चाहिए?” तब कर्ण ने अपनी वरदान की इच्छाआए जताई और कहा “प्रभु मुझे अगले जन्म मे, मैं आपके राज्य मे जन्म लेना चाहता हूँ, दूसरा की मेरा अंतिम संस्कार एसी भूमि पर हो जहा काभी अधर्म का पाप न हुआ हो…..” -पृथ्वी पर एसी कोई जगह न होने के कारण श्री कृष्ण ने अपनी हथेली पर ही कर्ण का अंतिम संस्कार किया।
यह थी कर्ण के महा दानवीर (Danveer Karna) कहलाए जाने की असल वजह। अब हम जानते हैं आखिर वह कौन सा मंदिर हैं जहां कर्ण 50 किलो सोना दान किया करते थे। एक कथा मे कर्ण (Danveer Karna) के हर रोज सवा मन यानि 50 किलो दान करते थे, हस्तिना पुर मे कर्ण घाट मंदिर मे योद्धा कर्ण माँ कामाख्या देवी की कठिन तपस्या करते थे और मंदिर से कुछ ही दूरी पर गुप्त रूप से आहुति देते थे।
कर्ण की दानवीरता और भक्ति से प्रसन्न होकर माँ कामाख्या उन्हे वरदान दिया की कर्ण कितना भी दान करे उसके खजाने मे मे हमेशा कई टन सोना बना रहेगा।
वरदान स्वरूप रोज मिलने वाला सोना भी रोज इसी मंदिर मे दान कर दिया करते थे। माना जाता था हैं की कर्ण के इस मंदिर के पास ही माँ कामाख्या का मंदिर था, एसे मे माना जाता हैं जिस स्थान पर बैठ कर कर्ण सोना दान दिया करते थे, उनके उस स्थान पर शिवलिंग की पुन: स्थापना कर दी गई हैं।