प्रभु राम और रावण से भी ज्यादा शक्तिशाली
एक ऐसा योद्धा जो प्रभु राम से भी ज़्यादा ताकतवर और शक्तिशाली था, एक ऐसा योद्धा जो रावण से भी अधिक बुद्धिमान था। एक ऐसा योद्धा जीसके जन्म के समय उसके तांत्रिक पिता ने नौ ग्रहों को बंधी बना लिया था ।
लेकिन ये सब कैसे मुमकिन हो पाया और कौन करता था उस योद्धा की रक्षा ? {1}
रामायण में रावण सबसे ज़्यादा ज्ञानी ब्राह्मण और बेहद शक्तिशाली था, उसने देवी देवताओं की तपस्या करके बहुत से वरदान और विद्याए प्राप्त की थी। रावण को अपने से भी ज़्यादा बलशली और शक्तिशाली पुत्र चाहिए था।
जिस समय रावण का पहला पुत्र जन्म लेने वाला था तब रावण ने सभी नौं ग्रहों को अपने कब्ज़े में करके उन्हें ग्यारवें स्थान में लाने की कोशिश की और सभी गृह ग्यारवें स्थान पर आ गए।
मन्यता है की ऐसे गृह नक्षत्रों में पैदा होने वाले व्यक्ति पूरी दुनिया में सबसे शक्तिशाली होते है।
नौ ग्रहों की शक्तियों के साथ पैदा होते है और कोई देवता भी इन्हें हरा नहीं सकता। सभी देवी -देवताओं को इस बात का ज्ञात हो गया, अगर ऐसा होता तब पुरे ब्राह्माण में आतंक फ़ैल जाता इसलिए, शनिदेव ग्यारवे स्थान से बारवें स्थान पर आ गए और उसी समय Meghnath का जन्म हो गया।
अपना मनचाहा पुत्र न पाने पर रावण बहुत क्रोधी हुआ और उसने सभी देवी देवताओं को बंधी बना लिया और अपने कारागृह में रख लिया और खुद स्वर्ग में राज्य करने लगा।
जन्म से ही मेघनाथ साधारण नहीं था, जब वो रोता, तब उसके मुख से रोने की आवाज़ नहीं, बल्कि बादल के गरजने की आवाज़ आती थी जिसकी वजह से उसका नाम मेघनाथ पड़ा। मेघनाथ ने बचपन से ही बहुत सारी विद्याए सीख ली थी।
एक बार सभी देवताओं ने रावण के कब्ज़े से निकलने की ठान ली और वह फरार हो गए लेकिन जाते -जाते रावण को दंड देने के लिए साथ ले गये। ये बात पता लगते ही Meghnath भी उनके पीछे गया और सभी को पराजित कर लिया, यहाँ तक की खुद देवों के रक्षक कार्तिके भी उसके सामने नहीं टिक पाए।
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मेघनाथ और इंद्रा के बीच एक घमासान युद्ध हुआ जिसमें इंद्रा ने हार मान ली जिसके बाद मेघनाथ का ‘इंद्रजीत’ नाम पड़ा।मेघनाथ और रावण ने इंद्रा देव का वध करके खुद उनके सिंघासन पर बैठने की ठान ली, जिसके बाद खुद ब्रह्मा प्रकट हो गए और मेघनाथ को कहा की वह इंद्रा को छोड़ दे । लेकिन ज़िद्दी मेघनाथ इतनी आसानी से कहाँ मानने वाला था ?
मेघनाथ ने कहा ‘में इंद्रा को तभी छोडूंगा जब आप मुझे अमृतवता या आजीवन अमर रहने का वरदान देंगे।
ये बात सुनकर ब्रह्माजी बोले ‘किसी को भी अमरता का वरदान देना सृष्टि के नियम के विरुद्ध है।
मैं ये वरदान नहीं दे सकता। लेकिन ब्रह्मा जी ने मेघनाथ को वरदान दिया की अगर तुम अपनी कुलदेवी निकुम्भिला का तांत्रिक यज्ञ करोगे तब उस यज्ञ कुण्ड से एक दिव्य रथ की उत्पत्ति होगी। उस रथ पर विराजमान होकर मेघनाथ अजेय होगा। और यदि यज्ञ भंग हुआ तो वह मारा जायेगा। मेघनाथ को केवलवो ही व्यक्ति मार पाएगा जो 14 वर्षों से नहीं सोया हो।
ये वरदान पाकर मेघनाथ बेहद खुश हो गया और इंद्रा को छोड़ दिया।
Meghnath ने अपने असुर-गुरु शुक्राचार्य से शिक्षा और विद्या हासिल की और उनके साथ रहकर बड़े -बड़े यज्ञ करके देवताओं को प्रसन्न कर लिया था और बहुत सारे वरदान प्राप्त कर लिए थे।13 वर्ष तक की आयु में मेघनाथ के पास ऐसे दिव्या अस्त्र थे जो ब्राह्माण में किसी को नहीं मिले थे जिसे की ब्रह्मास्त्र, वैष्णवास्त्र और पाशुपतास्त्र जो उसने त्रिदेवों को प्रसन्न कर के प्राप्त किये थे। लेकिन Meghnath इतने में संतुष्ट नहीं था।
“माँ निकुम्बाला: रावण के कुल की देवी और Meghnath की शक्ति
रावण के कुल की देवी माँ निकुम्बाला है। माँ निकुम्बाला माँ दुर्गा का ही अवतार है।एक बार जब विष्णुजी ने हिरण्याक्ष का वध करने के लिए नरसिंघ अवतार लिया था, तब हिरण्याक्ष का वध करने बाद भी नरसिंघ शांत नहीं हुए और अपने क्रोध से आतंक मचाने लगे। तब सभी देवी देवताओं ने महादेव के पास जाकर प्राथना की।
महादेव ने शरब अवतार यानी सिंह और पक्षी का अवतार ले लिया और नरसिंघ से युद्ध करने लगे। लेकिन दोनो के युद्ध का कोई परिणाम नहीं आ पा रहा था तब थक हार कर सभी देवी देवता माँ पार्वती यानी योगमाया के पास पहुंच गये और उनसे विनती की , कि इस युद्ध को रोक दे। तब योगमाया ने आधे सिंह और आधे मानव का रूप लिया जिनका नाम निकुंभला पड़ा।
देवी योगमाया के पास विष्णु जी को योग निद्रा में भेजने की शक्ति थी जिसका इस्तेमाल करके उन्होंने विष्णु जी के नरसिंघ अवतार को योग निद्रा में भेज दिया और उनके बीच प्रकट होकर दोनो को पराजित कर दिया।
माँ निकुंभला देवी का आधा सिंह वाला रूप शिव और विष्णु की विनाशकारी शक्ति रखती है और उनका मानव रूप अच्छे और बुराई के बीच संतुलन रखता है। इस तरह दोनो के बीच का युद्ध ख़तम हो गया।निकुंभला रावण के कुल की देवी थी। जिनकी पूजा रावण और मेघनाथ पूरी तांत्रिक विधि से करते थे और उन्हें प्रसन्न करके बड़ी-बड़ी सिद्धियां और आशीर्वाद प्राप्त करते थे। .
ये देवी भवानी का ही एक रूप है. रावण के पुत्र मेघनाद ने असुरोंके गुरू शुक्राचार्य की मदद से देवी निकुंभला की तांत्रिक साधना कर के उन्हे प्रसन्न किया था। देवी निकुंभला ने उसे एक दिव्य रथ प्रदान किया था.
तांत्रिक साधना से प्रसन्न होकर मेघनाद को एक वरदान और भी दिया था की जब-जब वह देवी निकुंभला की एकांत वास मे, जहाँ देवी गुंफा मे मंदीर था वहाँ जब -जब वो तांत्रिक साधना कर के अभिषेक करेगा और बली देगा तो देवी स्वयं उस के साथ युध्द मे साथ दे कर युध्द मे विजय दिलाएगी।
भगवान श्रीराम को यह बिभिषण ने बताया था, की Meghnath रावण को विजय दिलाने के लिए अब देवी निकुंभला की पूजा साधना करेगा, वह तपस्या विफल करने के लिए श्रीराम ने हनुमान, अंगद और लक्ष्मण को रात में ही उस गुंफा की ओर भेजा था।
जिन्होने वहाँ जाकर मेघनाद के जो सैनिक वहाँ रक्षा के लिए तैनात किए गए थे उनको मार दिया और मेघनाद की साधना का ऐन वक्त पर ध्वंस किया, जिस कारण वश संतप्त मेघनाद उनसे युध्द करने के लिए तैय्यार हुआ लेकिन हनुमानजी की मदद से लक्ष्मण ने उस समय मेघनाद का वध किया।