15वीं शताब्दी में महाराष्ट्र के लक्ष्मीनरसिंह मंदिर को भारत के सबसे रहस्यमई मंदिरों में से एक माना जाता था।
उस समय में इस मंदिर में अनेकों गुप्त तहखाने थे,जो वर्षों से बंद पड़े थे।
लेकिन सन 1888 में जब इस मंदिर के मुख्य पुजारी को स्वप्न में बालाजी के दर्शन हुए और बाद में मंदिर के आसपास खुदाई की गई|
तो यहाँ भारी खजानों के बीच सारंगधर बालाजी की एक मूर्ति भी मिली।
कहते हैं खजानों को अंग्रेजों ने जब्त कर लन्दन भिजवा दिया,लेकिन बालाजी की मूर्ति उनसे नहीं हिली।
सारंग धनुष धारण किए भगवान विष्णु रूपी बालाजी की प्रतिमा,आज भी विदर्भ प्रदेश के मेहकर गाँव में स्थित है।
जिसे एशिया की सबसे बड़ी बालाजी प्रतिमा भी कहते हैं।