Ratha Saptami 2024 – रथ सप्तमी का व्रत माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि ( Saptami Date ) को मनाया जाता है। इस दिन भगवान सूर्य की पूजा की जाती है। विशेष ध्यान दिया जाता है कि रथ सप्तमी के दिन सुबह पहले किसी कुंड या पवित्र नदी में स्नान करने से स्वास्थ्य का लाभ होता है। मान्यता है कि इस दिन की पूजा से भगवान सूर्य प्रसन्न होते हैं। रथ सप्तमी ( Rath Saptami ) की पूजा का महत्व और व्रत की कथा बहुत प्रसिद्ध हैं।
रथ सप्तमी कथा | Ratha Saptami Story
भविष्य पुराण के अनुसार सप्तमी तिथि को भगवान सूर्य का आविर्भाव हुआ। भगवान सूर्य ने इसी दिन सारे जगत को अपने प्रकाश से आलोकित किया था। उन्हें अपनी भार्या संज्ञा उत्तरकुरु में एवं संतानें भी सप्तमी तिथि के दिन प्राप्त हुईं ,अतः सप्तमी तिथि भगवान सूर्य को अतिप्रिय है।
रथ सप्तमी महत्व ( Rath Saptami Mahatv )
मान्यता है कि रथ सप्तमी ( Rath Saptami ) के दिन सूर्योदय के समय पवित्र नदी या कुंड में स्नान करने से बीमारियों से मुक्ति मिलती है। अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त होता है। यही वजह है कि इस व्रत को आरोग्य सप्तमी के नाम से भी जानते हैं। मत्स्य पुराण के अनुसार, यह व्रत पूरी तरह से सूर्य देव को समर्पित है।
रथ सप्तमी पूजा का मुहूर्त ( Ratha Saptami 2024 Pooja aur Muhurat )
पंचांग के अनुसार माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि ( Saptami Tithi ) की शुरुआत 15 फरवरी को सुबह 10 बजकर 12 मिनट से होगी और 16 फरवरी को सुबह 8 बजकर 54 मिनट तक रहेगी. रथ सप्तमी का व्रत ( Rath Saptami Vrat ) 16 फरवरी को रखा जाएगा.
भगवान सूर्य ने इसी दिन सारे जगत को अपने प्रकाश से आलोकित किया था। उन्हें अपनी भार्या संज्ञा उत्तरकुरु में एवं संतानें भी सप्तमी तिथि के दिन प्राप्त हुईं ,अतः सप्तमी तिथि ( Saptami Tithi ) भगवान सूर्य को अतिप्रिय है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन भगवान सूर्य की पूजा करने से लोगों को अक्षय फल की प्राप्ति होती है।
रथ सप्तमी पूजन विधि व मंत्र ( Rath Saptami Pooja Vidhi aur Mantra )
तांबे के लोटे में पवित्र जल लेकर जल में अष्टगंध , लाल पुष्प व अक्षत डालकर ”ॐ सूर्याय नमः ” इस सरल मंत्र से उदय होते सूर्य को अर्घ्य दें। तिल के तेल का दीपक इस दिन सूर्यनारायण ( Suryanarayan ) के निमित्त अर्पित करें। सूर्य को जल चढ़ाने के बाद लाल आसन पर बैठकर पूर्व दिशा की ओर मुख करके इस मंत्र का 108 बार जाप करें।
रथ सप्तमी ( Rath Saptami ) के दिन महिलाएं घरों में सूर्य देव का स्वागत करने के लिए उनका या उनके रथ का चित्र बनाती हैं। इसके साथ ही घर के मुख्य दरवाजे पर रंगोली बनाती हैं। आंगन में मिट्टी के बर्तन में दूध रखा जाता है और सूर्य देव की गर्मी से इसे उबाला जाता है। इसके बाद दूध का इस्तेमाल सूर्य भगवान के लिए भोग बनाने में किया जाता है।
क्या खास है रथ सप्तमी में ? ( Kya khaas hain Ratha Saptami mein )
भगवान सूर्य भगवान विष्णु द्वारा रखे गए जल के बर्तन से निकले थे, जो दुनिया में प्रकाश और जीवन की शुरुआत का प्रतीक था। इसलिए, रथ सप्तमी सूर्य और उसकी जीवन देने वाली ऊर्जा के आगमन का जश्न मनाती है। सूर्य को स्वास्थ्य, समृद्धि और ज्ञान के स्रोत के रूप में पूजा जाता है।
रथ सप्तमी किस भगवान के लिए है? ( Rath Saptami kise bhagwan ke liye hain )
रथ सप्तमी ( Rath Saptami ) भगवान सूर्य नारायण स्वामी का त्योहार है , जो फरवरी या मार्च के महीने में मनाया जाता है और इसे भगवान सूर्य का जन्म दिवस माना जाता है। इस दिन को सूर्य जयंती ( Surya jayanti ) के नाम से भी जाना जाता है।
रथ सप्तमी पर किस मंदिर में जाएँ? ( Ratha Saptami par kise Mandir mein jaye )
रथ सप्तमी के शुभ अवसर पर भगवान सूर्यनारायण स्वामी का आशीर्वाद लेने के लिए शुक्रवार को 150,000 से अधिक भक्त मंदिर आएंगे। अरासवल्ली मंदिर दक्षिण में सूर्य देवता को समर्पित सबसे बड़ा मंदिर है, जो ओडिशा के कोणार्क मंदिर के बाद दूसरा है।
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रथ सप्तमी पर क्या खाएं? ( Rath Saptami par kya khaaye )
लोग भगवान सूर्य की पूजा करते हैं और नारियल, बीटल के पत्तों और केले के साथ नैवेध्यम के लिए सक्कराई पोंगल और वडाई तैयार करते हैं ।
रथ सप्तमी पर हम क्या पका सकते हैं? ( Ratha Saptami par hum kya bana sakate hain )
रथ सप्तमी ( Ratha Saptami ) के दिन अधिकांश घरों में पोंगल पकाया जाता है। रथ सप्तमी के लिए मिठाई क्या है? परमन्नम इस दिन का प्रसिद्ध मीठा व्यंजन है । इसमें दूध के साथ चावल और गुड़ होता है.
हम रथ सप्तमी पर 108 सूर्य नमस्कार क्यों करते हैं? ( Hum Ratha Saptami par 108 Surya Namaskar kyu karate hain )
सूर्योपनिषद में कहा गया है कि जो लोग सूर्य की पूजा करते हैं वे शक्तिशाली, सक्रिय, बुद्धिमान बनते हैं और लंबी आयु प्राप्त करते हैं। 108 सूर्य नमस्कार के अभ्यास के माध्यम से, यह रथसप्तमी हमारे जीवन में नई शुरुआत, स्वास्थ्य और खुशी की ओर आपका पहला कदम बढ़ाती है ।
रथ सप्तमी में किस पत्ते का उपयोग किया जाता है? ( Ratha Saptami mein kise patte ka upayog kiya jaata hain )
सात अर्क पत्ते (जिसे कन्नड़ में एक्काडा एले, तमिल में एरुकम और तेलुगु में जिल्लेडु भी कहा जाता है) को सिर पर रखना चाहिए और सूर्यंतर्यामी भारतीरमण मुखप्राणंतर्गता लक्ष्मीनारायण का ध्यान करते हुए स्नान करना चाहिए।
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रथ सप्तमी श्लोक | Ratha Saptami Sloka
सप्तसप्तिप्रिये देवि सप्तलोकैकदीपिके ।
सप्तजन्मार्जितं पापं हर सप्तमि सत्वरम् ॥
यन्मयात्र कृतं पापं पूर्वं सप्तसु जन्मसु ।
तत्सर्वं शोकमोहौ च माकरी हन्तु सप्तमी ॥
नमामि सप्तमीं देवीं सर्वपापप्रणाशिनीम् ।
सप्तार्कपत्रस्नानेन मम पापं व्यापोहतु ॥
अर्घ्य श्लोकम् ।
सप्त सप्ति वहप्रीत सप्तलोक प्रदीपन ।
सप्तमी सहितो देव गृहाणार्घ्यं दिवाकर ॥
रथ सप्तमी अन्य पाठः
यदा जन्मकृतं पापं मया जन्मसु जन्मसु ।
तन्मे रोगं च शोकं च माकरी हन्तु सप्तमी ॥
एतज्जन्म कृतं पापं यच्च जन्मान्तरार्जितम् ।
मनो वाक्कायजं यच्च ज्ञाताज्ञाते च ये पुनः ॥
इति सप्तविधं पापं स्नानान्मे सप्त सप्तिके ।
सप्तव्याधि समायुक्तं हर माकरि सप्तमी ॥
सप्त सप्त महासप्त सप्त द्वीपा वसुन्धरा ।
श्वेतार्क पर्णमादाय सप्तमी रथ सप्तमी ॥
इति श्री रथ सप्तमि श्लोकाः ||
सूर्य आरती | Surya Aarti
ॐ जय सूर्य भगवान, जय हो दिनकर भगवान।
जगत् के नेत्रस्वरूपा, तुम हो त्रिगुण स्वरूपा।
धरत सब ही तव ध्यान, ॐ जय सूर्य भगवान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान…।।
सारथी अरुण हैं प्रभु तुम, श्वेत कमलधारी। तुम चार भुजाधारी।।
अश्व हैं सात तुम्हारे, कोटि किरण पसारे। तुम हो देव महान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान…।।
ऊषाकाल में जब तुम, उदयाचल आते। सब तब दर्शन पाते।।
फैलाते उजियारा, जागता तब जग सारा। करे सब तब गुणगान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान…।।
संध्या में भुवनेश्वर अस्ताचल जाते। गोधन तब घर आते।।
गोधूलि बेला में, हर घर हर आंगन में। हो तव महिमा गान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान…।।
देव-दनुज नर-नारी, ऋषि-मुनिवर भजते। आदित्य हृदय जपते।।
स्तोत्र ये मंगलकारी, इसकी है रचना न्यारी। दे नव जीवनदान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान…।।
तुम हो त्रिकाल रचयिता, तुम जग के आधार। महिमा तब अपरम्पार।।
प्राणों का सिंचन करके भक्तों को अपने देते। बल, बुद्धि और ज्ञान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान…।।
भूचर जलचर खेचर, सबके हों प्राण तुम्हीं। सब जीवों के प्राण तुम्हीं।।
वेद-पुराण बखाने, धर्म सभी तुम्हें माने। तुम ही सर्वशक्तिमान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान…।।
पूजन करतीं दिशाएं, पूजे दश दिक्पाल। तुम भुवनों के प्रतिपाल।।
ऋतुएं तुम्हारी दासी, तुम शाश्वत अविनाशी। शुभकारी अंशुमान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान…।।
ॐ जय सूर्य भगवान, जय हो दिनकर भगवान।
जगत् के नेत्रस्वरूपा, तुम हो त्रिगुण स्वरूपा।स्वरूपा।।
धरत सब ही तव ध्यान, ॐ जय सूर्य भगवान।।