मथुरा होली | Mathura Holi
Mathura Holi 2024 – मथुरा की होली यानी ब्रज की होली दुनियाभर में प्रसिद्ध है. मथुरा में फाग उत्सव का प्रारंभ वसंत पंचमी के दिन से प्रारंभ हो गया है. ब्रज की होली में बरसाना की लठमार होली, राधारानी के महल की लड्डू होली, गोकुल की छड़ीमार होली, रावल का हुरंगा, होलिका दहन और रंगों की होली प्रसिद्ध है.
बरसाना और नंदगांव में लट्ठमार होली 2024 ( Barsana aur Nandgaon mein Lathmar Holi 2024 )
होली का उत्सव अन्य राज्यों की होली से 4-5 दिन पहले उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के नंदगाँव और बरसाना कस्बों में मनाया जाता है। यहां के लोग रंगों के साथ-साथ लाठियों से भी होली खेलते हैं, जिसे लठमार होली कहते हैं। यह उत्सव ठंडाई के साथ भी मनाया जाता है, इसलिए इसे अवश्य आनंदित करें |
लट्ठमार होली 2024 तिथियाँ ( Lathmar Holi 2024 Tithi )
इस वर्ष 18 मार्च को बरसाना और 19 मार्च को नंदगांव में लट्ठमार होली का उत्सव मनाया जाएगा।
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बरसाने की लठमार होली कब है 2024? ( Barsane ki Lathmar Holi kab hain 2024 )
बरसाना लठमार होली 2024 (18 मार्च, सोमवार)
नंद भवन के हुरयारे बरसाना में लठमार होली खेलने आते हैं, जहां गोपियां उन पर जमकर रंग डालती हैं और लठ से उनका स्वागत करती हैं। इस बार बरसाना की लठमार होली 18 मार्च को खेली जाएगी।
लट्ठमार होली में क्या होता है? ( Lathmar Holi mein kya hota hain )
Mathura Holi 2024 : ‘लट्ठमार होली’ एक अनोखा उत्सव है जो होली से कुछ दिन पहले बरसाना में मनाया जाता है। बरसाना शहर, जो राधा रानी के साथ अपने संबंध के लिए जाना जाता है ,इस वर्ष 18 मार्च को बरसाना में “लट्ठमार होली” मनाई जायगी | पुरुष महिलाओं पर रंग फेंकेंगे, जबकि महिलाएं उन्हें मारने और उन्हें भगाने के लिए लाठियों का इस्तेमाल करेंगी।
लट्ठमार होली क्यों मनाई जाती है? – लट्ठमार होली की शुरुआत कैसे हुई? ( Why is Lathmar Holi Celebrated )
कहा जाता है कि कृष्ण भगवान राधा की जन्म भूमि बरसाना में होली खेलने जाते थे, जहां वह खूब मस्ती किया करते थे और अपनी हरकतों से राधा और गोपियों को सताते थे. कृष्ण को सबक सिखाने के लिए राधा और गोपियां उन्हें डंडे से मारती थीं. इस मार से बचने के लिए कृष्ण ढालो का उपयोग करते थे और यहीं से शुरु हुई लट्ठमार होली ( Lathmar Holi ) की परंपरा.
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लठमार होली कहां की प्रसिद्ध है? ( Lathmar Holi kaha ki prasid hain )
ब्रज के बरसाना गाँव में होली एक अलग तरह से खेली जाती है जिसे लठमार होली कहते हैं। ब्रज में वैसे भी होली ख़ास मस्ती भरी होती है क्योंकि इसे कृष्ण और राधा के प्रेम से जोड़ कर देखा जाता है। यहाँ की होली में मुख्यतः नंदगाँव के पुरूष और बरसाने की महिलाएं भाग लेती हैं, क्योंकि कृष्ण नंदगाँव के थे और राधा बरसाने की थीं।
अंगारों की होली कहां खेली जाती है ? ( Angaaron Ki Holi Kaha khelee jaate hain )
होली के पर्व के तहत राजस्थान के वागड़ इलाके में स्थित डूंगरपुर जिले के कोकापुर गांव में दहकते अंगारों पर चलने की परंपरा है. वहीं भीलूडा में पत्थर मार खूनी होली खेली जाती है.
फूलों की होली कहाँ खेली जाती हैं ? ( Phoolon ki Holi kahan kheli jaati hai )
फूलों की होली, एक उत्साहपूर्ण त्यौहार है जो भारत में हर साल मनाया जाता है। रंगों और फूलों का यह त्यौहार भगवान कृष्ण और राधा के प्रेम और बसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक माना जाता है। फूलों से खेले जाने वाली होली, ब्रज, मथुरा और बरसाना में बड़े ही धूमधाम से मनाई जाती है।
पुष्कर में कौन सी होली खेली जाती है ? ( Pushkar mein kaunsi Holi khelee jaati hain )
पुष्कर होली ( Pushkar Holi ) महोत्स्व का आयोजन राजस्थान के अजमेर जिले के छोटे से शहर पुष्कर में आयोजित किया जाता है। होली महोत्सव का आयोजन पुष्कर के लाबेला होली मंडल के तत्वाधान में वराह घाट चौक पर आयोजित किया जाता है।
मथुरा में होली कितने दिन मनाई जाती है?(How Many days Holi is celebrated in Mathura)
Mathura Holi 2024 : मथुरा वृंदावन में खेली जाने वाली होली पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है. हर साल देश विदेश से लाखों लोग होली मनाने के लिए मथुरा वृंदावन पहुंचते हैं. मथुरा वृंदावन में होली का कार्यक्रम लगभग 40 दिनों तक चलता है.
होली के दिन क्या खाते हैं? ( Holi ke Din kya Khaate hain )
इस अवसर पर लोग अलग-अलग प्रकार के व्यंजन तैयार करते हैं और दूसरों के साथ बांटते हैं। होली के खाने के प्रमुख व्यंजनों में गुजिया, मठरी, दही भल्ले, कचौरी, समोसे, पापड़ और नमकीन शामिल होते हैं। इनके अलावा, स्वीट्स भी बहुत लोकप्रिय होते हैं। होली के विभिन्न राज्यों में अलग-अलग मिठाई तैयार की जाती है।
होली में कौन कौन से व्यंजन बनाए जाते हैं? ( Holi mein kaun – kaun se Mithai banaee jaati hain )
आप इन्हें होली पर बना सकते हैं.
- होली बिना ठंडाई के भला कैसे मनाई जा सकती है.
- आलू के गुटके- खासकर उत्तराखंड में चटपटे आलू के गुटके होली पर जरूर बनाए जाते हैं.
- मालपुआ- स्वीट डिशेज से बिना होली अधूरी है.
- कांजी वड़ा- कांजी वड़ा भी होली का एक पारंपरिक पकवान है.
- गुजिया
- पूरन पोली
2024 में होली कितने मार्च को है? ( Holika Dahan Kab hai 2024 mein )
पंचांग के अनुसार, होलिका दहन का शुभ मुहूर्त 24 मार्च को रात 11 बजकर 13 मिनट से लेकर 12 बजकर 27 मिनट तक है। इस अवधि के दौरान होलिका दहन किया जाएगा।
लड्डू होली के लिए कौन सा शहर प्रसिद्ध है? ( Laado Holi ke liye kaunsa Shahar Prasid hain )
बरसाना लड्डू होली ( Laddu Holi ) के लिए प्रसिद्ध है। बरसाना के लोग लड्डुओं से होली खेलते हैं।
जानें मथुरा में कब कोनसी होली मनाई जाएगी? ( Mathura Holi List 2024 )
मथुरा होली कैलेंडर
17 मार्च (रविवार) | बरसाना (लाडलीजी मंदिर) | लड्डू होली (मीठी होली) |
18 मार्च (सोमवार) | बरसाना | श्री राधा रानी मंदिर में लठमार होली (छड़ी होली)। |
19 मार्च (मंगलवार) | नंदगांव | लठमार होली (छड़ी होली) |
20 मार्च (बुधवार) | वृंदावन | बांकेबिहारी मंदिर में फूलों वाली होली |
20 मार्च (बुधवार) | मथुरा | कृष्ण जन्मभूमि मंदिर में जीवंत उत्सव |
21 मार्च (गुरुवार) | गोकुल | छड़ी मार होली (लठमार होली का एक सरल संस्करण) |
22 मार्च (शुक्रवार) | द्वारिकाधीश | |
23 मार्च (शनिवार) | वृंदावन | गोपीनाथ मंदिर मैदान में विधवाओं की होली |
24 मार्च (रविवार) | मथुरा | होलिका दहन |
25 मार्च (सोमवार) | मथुरा | हर गली में रंग लड़ता है |
26 मार्च (मंगलवार) | बलदेव | दाऊजी मंदिर में हुरंगा होली |
ब्रज की होली ( Braj ki Holi )
Braj Ki Holi Kab Se Hai : ब्रज में होली का उत्सव शुरू हो गया है और अब हर रोज कान्हा को गुलाल लगया जाता है। ब्रज में 40 दिन तक होली का उत्सव मनाया जाता है, जिसकी शुरुआत बांके बिहारी मंदिर से होती है और समापन रंगनाथ मंदिर से। ब्रज की होली को देखने के लिए देश विदेश से लाखों लोग आते हैं और होली के रंगों में रंग जाते हैं।
बांके बिहारी मंदिर की होली ( Banke Bihari Holi )
होली में गुलाल, अबीर, टेसू के फूल का रंग, चोवा, चंदन, इत्र, अरगजा, केसर, गुलाब जल, केवड़ा का प्रयोग होगा। ठाकुर बांकेबिहारी के गर्भगृह से बरसते हुए कृपारूपी रंग की एक-एक बूंद के लिए श्रद्धालु लालायित रहते हैं। मान्यता है इस टेसू के गुनगुने रंग में भीगने से त्वचा संबंधित परेशानियां नहीं होतीं व चर्मरोग सही हो जाते हैं।
गोकुल की छड़ीमार होली ( Gokul ki Chhadimaar Holi )
गोकुल में लाठी की जगह छड़ी से होली खेली जाती है। यहां छड़ीमार होली के दिन गोपियों के हाथ में लट्ठ नहीं, बल्कि छड़ी होती है और ये होली खेलने आए कान्हाओं पर छड़ी बरसाती हैं। दरअसल, बचपन में कान्हा बड़े चंचल हुआ करते थे। गोपियों को परेशान करने में उन्हें बड़ा आनंद मिलता था।