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- सूर्य की उपासना करने से व्यक्ति को समाज में मान-सम्मान और हर कार्य में सफलता प्राप्त होती है। हर रविवार को सूर्य रक्षा कवच का पाठ करना बहुत ही लाभकारी रहता है।
- Every disaster can be avoided by reciting Surya Kavach described in the scriptures. This shield protects a person’s limb.
- This surya kavacham provides good luck and divinity.
- By worshiping the sun, one gets respect and respect in society and gets success in every work. It is very beneficial to recite Surya Raksha Kavach every Sunday.
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शास्त्रों में वर्णित सूर्य कवच के पाठ से हर आपदा से बचा जा सकता है [1]। यह कवच व्यक्ति के अंग-प्रत्यंग की रक्षा करता है। यह कवच संपूर्ण रूप से सौभाग्य और दिव्यता प्रदान करता है, यश और पराक्रम देता है।वैसे तो प्रतिदिन ही सूर्य देवता को अर्घ्य देना चाहिए परंतु यदि आप रोज यह कार्य नहीं कर सकते हैं तो हर रविवार को सूर्य देव की उपासना अवश्य करनी चाहिए।
सूर्य कवच लॉकेट में हिन्दू धर्म के एकमात्र प्रत्यक्ष देवता की अलौकिक शक्तियों का वास है। कवच जिसका अर्थ होता है शरीर को सरंक्षण प्रदान करना और जब इसमें किसी देवता का नाम जुड़ जाता है तो वह कवच उस देवता विशेष की शक्तियों के नाम से जाना जाता है। Surya Kavach Locket इसे धारण करने वाले को सूर्य की भांति तेज प्रदान करता है। जीवन में सफलता प्राप्त करने, सौभाग्य में वृद्धि के लिए, पराक्रम के लिए यह सूर्य कवच लॉकेट बहुत लाभकारी सिद्ध होगा।
सूर्य कवच के संबंध में याज्ञवल्क्य का उवाच संस्कृत में कुछ इस प्रकार है :
श्रणुष्व मुनिशार्दूल सूर्यस्य कवचं शुभम्।
शरीरारोग्दं दिव्यं सव सौभाग्य दायकम्।1
अर्थात : सूर्य कवच शुभता का प्रतीक है, इसके प्रयोग से सौभाग्य की प्राप्ति होती है, हर कार्य में सफलता मिलती है, शारीरिक रोगों से मुक्ति मिलती है। जातक यदि अपनी ऊर्जा को सकारात्मक दिशा में प्रयोग में लाना चाहते है तो Surya Kavach बहुत लाभकारी है।
1. सूर्य कवच लॉकेट का सबसे बड़ा फायदा है कि इससे जातक को सूर्य देव की असीम कृपा प्राप्त होती है।
2. व्यक्तित्व और भविष्य सूर्य के तेज की भांति उज्ज्वल होता है।
3. कवच की अलौकिक शक्तियां व्यक्ति को समस्त प्रकार के रोगों से रक्षा प्रदान करती हैं।
4. यह लॉकेट सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ाने में अपनी भूमिका अदा करता है।
5. मान-सम्मान और प्रतिष्ठा पाने के इच्छुक जातक इस पेंडंट को धारण करें। आपकी मनोकामना अवश्य ही पूर्ण होंगी।
1. Surya Kavacham लॉकेट को धारण करने के लिए रविवार या किसी शुभ मुहूर्त का चयन करें।
2. प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
3. इसके उपरांत सूर्य देव को सूर्य बीज मंत्र का उच्चारण करते हुए अर्घ्य दें।
”ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय नम:।”
4. फिर मंदिर में घी का दीपक और धूप जलाएं।
5. इसके बाद ”ॐ सूर्याय नम:” का उच्चारण करते हुए इस लॉकेट को धारण करें।
हमारे पास जो लॉकेट रूपी Original Surya Kavach उपलब्ध है उसकी कीमत मात्र 399₹ है। यदि आप खरीदने के इच्छुक हैं तो आज ही इस अलौकिक लॉकेट को Online Order कर इसकी शक्तियों को आजमाएं।
जन्म जुड़ी सूर्य भगवान की कथा की बात करें तो इसके पीछे दो कहानियां जुड़ी हुई है। सूर्य देव की कथा में सबसे पहली कहानी तो मार्कण्डेय पुराण में वर्णित है जिसके अनुसार आरंभ में सृष्टि अन्धकार में थी यानी यह संसार बिना प्रकाश के ही गतिमान था। एक बार ब्रह्मा जी पृथ्वी भ्रमण करने आये और उन्होंने अपने मुख से ॐ शब्द का उच्चारण। यह उच्चारण सूर्य के तेज का ही एक निम्न या सूक्ष्म आकार था। इसी तरह ब्रह्मा जी के चार मुखों से निकले ॐ से चारों वेद बने। इन्हीं चार मुखों से निकले ॐ के तेज से सूर्य का जन्म हुआ।
दूसरी सूर्य भगवान की कथा के अनुसार सृष्टि के निर्माण के समय ब्रह्मा जी के पौत्र महर्षि कश्यप का विवाह अदिति से हुआ था। महर्षि कश्यप की पत्नी अदिति ने सूर्य देव की उपासना और कठोर तप कर उन्हें प्रसन्न किया था इसी के कारण भगवान सूर्य ने सुषमा रूपी किरण बन अदिति के गर्भ में स्थान लिया।
अदिति इतनी अधिक भक्ति में लीन थी कि गर्भवती होने के बावजूद कठोर तपस्या करती रही। यह दृश्य देख महर्षि कश्यप ने अदिति पर बहुत क्रोध किया और कहा कि गर्भावस्था में इस तरह की कठोर तपस्या शिशु के लिए बिल्कुल ठीक नहीं है। उन्होंने तो यहाँ तक कह दिया कि क्या तुम गर्भस्थ शिशु को मारना चाहती हो? इन वचनों को सुनकर अदिति ने उस गर्भस्थ शिशु को अपने गर्भ से अलग कर दिया। अदिति के गर्भ से उस दौरान भगवान सूर्य का जन्म हुआ।
सूर्य भगवान के पिता जी का नाम महर्षि कश्यप और माता का नाम अदिति है।
छठी देवी को सूर्यदेव की मानस बहन माना गया है इस प्रकार सूर्य देव की बहन छठी देवी है जिनकी हर वर्ष छठ पूजा के उपासना होती है।
सूर्यदेव की चार पत्नियां थीं जिनके नाम कुछ प्रकार हैं : संज्ञा, छाया, उषा और प्रत्युषा।
हिन्दू धार्मिक शास्त्रों में मनु, यम, कर्ण और सुग्रीव भगवान सूर्य के पुत्र बताये गए हैं।
सूर्य देव की पत्नी छाया के पुत्र शनिदेव का वर्ण गहरा था जिस कारण सूर्यदेव उन्हें पसंद नहीं करते थे और इसी घृणा के कारण उन्होंने छाया से शनिदेव को अलग कर दिया था। माता का पुत्र से वियोग ही सूर्यदेव के श्राप का कारण बना क्योंकि छाया ने सूर्यदेव को कुष्ठ रोग का श्राप दिया था।
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