पुराणों के अनुसार जब दैत्य राज बलि ने स्वर्ग के साथ साथ सम्पूर्ण सृष्टि पर कब्जा कर लिया था और
देवताओं से उनका सब कुछ छीन लिया था तो देवतागण लाचार होकर विष्णु जी पास पहुंचे।
विष्णु जी ने देवताओं को राजा बलि के आतंक से मुक्त कराने का वचन दिया और वामन अवतार लेने का फैसला किया।
श्री विष्णु जी ने ब्राह्मण के वेश में वामन अवतार लेकर दैत्य राज बलि पास आए।
उन्होंने विष्णु जी का खूब आदर सत्कार किया और जाते समय उन्हें दक्षिणा में कुछ मांगने के लिए कहा।
राजा बलि ने विष्णु जी को बालक समझकर उनसे कहा की वे इस पूरी सृष्टि के मालिक है
दक्षिणा के रूप में वामन अवतार विष्णु जी ने राजा बलि से 3 कदम भूमि मांगी।
वामन रूप में विष्णु जी ने पहले कदम में पूरी धरती, दूसरे कदम में संपूर्ण आकाश और तीसरा कदम रखने के लिए राजा बलि से जगह मांगी तो उन्होंने अपना सर सामने झुका दिया।
भगवान विष्णु ने असुर राज बलि के अत्याचारों से जब देवताओं को मुक्ति दिलाई तो वो दिन भी कार्तिक माह की त्रयोदशी यानी धनतेरस का ही दिन था।
इस दिन बलि द्वारा लूटी गई देवताओं की सारी धन संपत्ति वापिस आ गई और तभी से असुरों पर देवताओं की इस जीत को धन तेरस के पर्व के रूप में मनाया जाने लगा